हमारा लॉकडाउन
एक शाम मैं बैठी थी मुझे माज़ी का ख्याल आया , कि एक टाइम था जब हम गांव के एक बड़े से घर में सब कजिन दादा दादी के साथ इखट्टे रहा करते थे , गांव में हमारा घर बहुत बड़ा खुला हवादार है , जब हम छोटे छोटे थे सब स्कूल एक साथ जाते , उस टाइम लगता हमारी यही ज़िन्दगी अच्छी और पुरसुकून है , लेकिन जैसे ही सब बड़े हुवे अपनी अपनी पढाई पूरी करने के लिए अलग अलग शहरो में शिफ्ट हो गए उसके बाद सिर्फ त्योहारों पर घर आते सब इखट्टा होते खूब हल्ला गुल्ला करते , लगता फिर से वही बचपन लोट आया है ,
फिर कुछ दिन वापस चले जाते , वो गांव का घर फिर से वीरान सा लगने लगता , कुछ टाइम बाद एक बहन और एक भाई की शादी हो गयी , भाभी बहुत अच्छी और हम जैसी ही थी ,
बहन के छोटी छोटी बेटियां है , अब वो छुट्टी में जब भी नानी के घर यानि गांव के घर में आती है बहुत मस्ती करती , वो घर वो आंगन फिर से खुशगवार लगने लगता है , वो नन्ही नन्ही परियां बहुत उछल कूद करती है . वो मामू और खाला की जान हैं .
वक़्त गुज़रता गया सब अपने अपने कामो में बिजी थे , सब जॉब करने लगे थे कोई डॉक्टर और इंजीनयर ,
फिर अचानक एक ऐसा वाइरस फैला , जिसको कोरोना के नाम से पहचाना गया , उससे लोगो में काफी दहशत फैली हुई हैं , उस बीमारी ने लोगो का आपस में मिलना जुलना आना जाना सब बंद कर दिया ,
सभी जगह पूरी तरह से लॉकडाउन हो गया , सब ऑफिस कॉलेज सब बंद होने के बाद घर के सब लोग गांव के उस घर में फिर से इखट्टा हो गये , वो बचपन वाली ज़िन्दगी तो नहीं थी लेकिन हमारी ज़िन्दगी उस टाइम बचपन से अलग भी नहीं थी ,
गांव के सब लोग अपने अपने घरो में वापस आगये थे , वो वो लोग भी नज़र आये जिन्हे काफी सालो से नहीं देखा था ,
बाहर की दुनिआ में ऐसे लग रहा था जैसे तबाही आयी हुई हो , और सच में तबाही आयी हुई थी लोग परेशान थे कारोबार बंद हो गये , लोग भुकमरी की तरफ जाने लगे
लेकिन हमारे गांव के लोगो में एक अजीब ही उत्साह था , लोग एक दूसरे से ऐसे मिलते जैसे बहुत सालो बाद मिल रहे हों
गांव में ऐसे लगता जैसे सब त्यौहार एक साथ आगये हों .
बसंत ऋतू के मौसम में गांव में चारो तरफ हरियाली थी , हमारे उस बड़े से घर में जहाँ दादा दादी की यादें थी अब वो नहीं रहे थे ,
हमारे घर के बीच में एक बड़ा सा जामुन का और एक अमरूद पेड़ हैं वहाँ सुबह शाम चिड़ियाँ आकर चहचहाती हैं घर में चारो तरफ हरे भरे पौधे लगे हैं ,
उसी आँगन में फिर से वही आवाज़ गुंजी और वही रौनक लोट आई ,
एक शाम हम सब बैठे थे , अचानक ख्याल आया कि घर का जो हिस्सा खाली पड़ा हैं वहाँ पर कुछ उगते हैं और उसको सही करते हैं
सबने मिलकर उसमे मेहनत से काम किया , दिन का ज्यादा टाइम हम सब कजिन उसमे ही लगाते , मेहनत और लगन से हम सबने मिलकर उसे एक पार्क और किचन गार्डन कि तरह बनाया .
वो एक चौकोर जगह थी , उसमे बीच में एक लाल रंग का रास्ता बनाया और रस्ते के दोनों तरफ बांस कि दीवारे लगाई , एक तरफ किचन गार्डन और एक तरफ पौधे लगाये , बीच में एक बांस कि प्यारी सी गोल झोंपड़ी बनाई . उसमे बांस कि ही चेयर और टेबल डाले
हमारा लॉकडाउन
अब वो नज़ारा बहुत दिलकश और पुरसुकून लगने लगा , हम लोग वही इखट्टे बैठ कर बांस कि उसी गोल झोंपड़ी में शाम की चाय पीते
कुछ दिन बाद बरसात शुरू हों गई , जो पौधे और सब्ज़ी लगाई थी कुछ ही दिनों में वो अब बड़े और हरे भरे हों गये सब सब्ज़िया आने लगी, और पोधो पर फूल भी आने लगे , जिसने भी उसको देखा बहुत सराहा , हम लोग भी अपने हाथो से बनाये हुवे उस पार्क को देख कर बहुत खुश होते .
अब जो देश में पूरी तरह से लॉकडाउन था अब वो आहिस्ता आहिस्ता खुलने लगा . अब सब लोग अपने अपने शहर वापस चले गये .
अपने गांव और घर की यादो के साथ .
अब जब भी गांव आते हैं उसी झोंपड़ी में बैठ कर शाम की चाय पीते हैं .
बुशरा मरयम
खुदा की मर्ज़ी वो किसी भी आज़माइश में डाल देता है
मगर खुश रहने का अपना अपना अंदाज़ होता है .
Muzamil- م ز م ل
14-Aug-2021 09:06 PM
❤️
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Nisha
03-Jan-2021 09:01 PM
آپ کا لاک ڈاؤن زبردست رہا ہے
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Bushra Maryam
03-Jan-2021 02:17 PM
han g
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